लेखक - वरिष्ठ पत्रकार चैतन्य भट्ट
एक बड़ी पुरानी कहावत है 'चाहे लाख करे चतुराई करम का लेख मिटे ना रे भाई' ये कहावत अपने प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और कांग्रेसियों पर पूरी तरह से फिट बैठ रही है।
मार्च में बीजेपी ने जब उनकी सरकार पलटी थी उसके बाद से हर कांग्रेसी प्रवक्ता टीवी में गला फाड़ - फाड़ के चिल्ला रहा था कि बस 15 अगस्त आने दो एक बार फिर कमलनाथ जी जनता के नाम सन्देश देंगे, पर बुरा हो कोरोना का, उपचुनाव ही नहीं हो पाए इधर 15 अगस्त आने वाला था लेकिन कमलनाथ जी का कहीं कोई जुगाड़ संदेश के लिए दिख नहीं रहा था सो उनने भी 14 की रात को देश प्रदेश के लोगों के नाम पर एक संदेश दे दिया, कि 'लोकतंत्र को बचाओ और सच्चाई का साथ दो' उनके सन्देश के बाद से अपन बहुत ही कंफ्यूजन में है कि ये लोकतंत्र है कहां, अरे जिसका वजूद ही नहीं है उसको हम बचाएं तो बचाएं कैसे?
लोकतंत्र का 'मर्डर' तो कब का हो चुका है सरकारें चाहे किसी की भी रही हों लोकतंत्र और संविधान की जो धज्जियां राजनैतिक दलों ने उड़ाई है उसका कोई मुकाबला नहीं कर सकता, वैसे कहते जरूर है कि लोकतंत्र जनता का, जनता के लिए, और जनता द्वारा होता है लेकिन आजकल के लोकतंत्र में जनता की धेले भर की इज्जत बची नहीं है। पांच साल में एक बार चुनाव लड़ने वाले उसके दरवाजे पर भिखमंगों की तरह खड़े होकर गाना गाते है' दे दाता के नाम तुझको अल्ला रख्खे'। तमाम वादों की पोटली उसके सामने खोलकर उसे तरह तरह का लालच देकर उसका वोट हथिया कर जैसे ही गद्दी पर आते हैं उसके बाद से ऐसे गायब होते जैसे 'गधे के सिर से सींग'।
कहने को तो अपने देश में लोकतंत्र है लेकिन देखें तो यहां 'राजतंत्र' ही जारी है जैसे पहले जब राजा की सवारी निकलती थी तो जनता को किनारे कर दिया जाता था वही हाल अब भी है मुख्यमंत्री, और मंत्री जब कभी सड़क से गुजरते है तो पुलिस वाले रियाया को धकिया कर किनारे खड़े कर देते हैं , पहले जब राजा की मर्जी होती थी तो राजा किसी को भी कुछ दे देता था वैसा ही अब मुख्यमंत्री लोग कर लेते हैं 'किसी का कर्जा माफ हो जाता है' तो 'किसी की बिजली के बिल माफ हो जाते हैं''किसी को मुफ्त में अनाज मिल जाता है' तो 'किसी का फ्री फ़ोकट में घर दे दिया जाता है' पहले राजा लोग 'हाथियों' पर निकलते थे, अब बड़ी बड़ी कारों पर निकलते है, जैसे पहले 'राजा का बेटा राजा' बनता था वैसे ही अब 'मंत्री का बेटा मंत्री' बनता है कुल मिलाकर हम अभी राजा महाराजाओं से मुक्त नहीं हुए हैं और अपने प्रदेश की राजनीति में तो अभी भी राजा, महाराजा बकायदा दिखाई दे ही रहे और इन राजा और महाराजा के ही चक्कर में बेचारे कमलनाथ जी के हाथ से गद्दी फिसल गयी।
कमलनाथ जी ने अपने सन्देश में ये भी कहा कि वे अपने 'सपनों का मध्यप्रदेश' बना के रहेंगे, अरे भैया जब गद्दी पर आओगे तब तो सपनों का मध्यप्रदेश बना पाओगे ना, अभी तो मामा उस गद्दी पर पूरी ताकत से 'फेविकोल' लगा कर चिपक के बैठे हैं उनको हटाना बड़ी 'टेढ़ी खीर है'। आप तो सपने में ही अपने सपने का मध्यप्रदेश देखते रहो आप कह रहे हो कि जनता सच्चाई का साथ दें तो हम बताये देते हैं आप लोगों की संगत में रहते रहते अब जनता को भी 'सचाई अचाई' से कोई मतलब नहीं रह गया है है वो तो यह देख रही है कि कौन सत्ता में है उसको वोट दो ताकि थोड़ा बहुत विकास उसके इलाके में हो सके, फिर इधर आपकी पार्टी के नेता भी तो आप का दामन छोड़ छोड़ भाग रहे हैं आप कह रहे हो कि बीजेपी वालों ने हमारे लोगों को खरीद लिया, तो आपको किसने रोका है आप भी खरीद फरोख्त कर लो यदि आपकी बात मान भी लें तो उस हिसाब से तो मंडी लगी है ग्राहक कोई भी हो सकता है बस जेब में नोट होने चाहिए और उसी की कमी आपकी पार्टी के पास आजकल चल रही है।
अपना तो सोचना ये है कि भैया लोकतंत्र, सच्चाई, ईमानदारी, शुचिता, सिद्धांत ये तमाम शब्द राजनीति की 'डिक्शनरी' से विलोपित कर दिए गए हैं इसलिए ना तो इन शब्दों का कोई अर्थ है और ना कोई भावार्थ।
आपकी पीड़ा हम समझते हैं और आपके लिए यही गाना गा सकते हैं 'दिल के अरमा आंसुओं में बह गए हम वफा करके भी तनहा रह गए' धन्यवाद
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