कलेक्टरों को अब 'नोटशीट' की जगह 'स्लेट' दे देना चाहिए


लेखक - वरिष्ठ पत्रकार चैतन्य भट्ट

कई बरस हो गए जब हम लोग प्राइमरी कक्षा में पढ़ा करते थे, उन दिनों हमें एक 'काली स्लेट' और 'सफेद पेंसिल' दी जाती थी, कई बच्चों  के पास 'पत्थर' वाली स्लेट होती थी लेकिन जो बच्चे बार बार स्लेट को तोड़ देते थे तो उनके माँ बाप  उनको 'टीन' वाली स्लेट  दिला  देते थे। इस स्लेट पर हम सवाल भी हल करते थे और अधिकतर बच्चे दूसरे सवाल के लिए पहले सवाल को  'थूक'  से मिटा कर उस पर दूसरा सवाल हल कर लिया करते थे।

'मासाब' जिन्हें उन दिनों 'पंडित जी' कहा जाता था देखते रहते थे कि  कौन सा बच्चा  थूक  से स्लेट पर लिखा हुआ सवाल मिटा रहा है उनके आदेश रहते थे है बच्चा गीला कपड़ा लेकर आएं  और उस  गीले कपडे से  लिखा हुआ सवाल मिटायें, वो ये भी बताते थे कि थूक से मिटाने से  'विद्या माई' गुस्सा हो जाएंगी पर उन दिनों थूक से लिखा हुआ सवाल मिटाने का जो आनंद था वो अद्भुत था, कई बार मार भी पड़ती थी  पर वो आदत नहीं  छूटती थी।

इन दिनों कोरोना वायरस को लेकर पूरे देश और प्रदेश में 'लॉकडाउन' की स्थितियां बन रही है पहले अपनी प्रदेश की सरकार  कहती थी कि हर कलेक्टर अपने अपने जिले में वहां की परिस्थिति देखकर लॉकडाउन लगा सकता है लेकिन जब प्रदेश के मुखिया 'मामा जी' ने देखा इस चक्कर में अपनी जेब और अपना खजाना दोनों खाली होते जा रहे हैं तब  आदेश दे दिया, खबरदार कोई भी कलेक्टर अपने मन से लॉकडाउन ना लगाएं, जिसको भी लॉकडाउन  लगाना है वह पहले हम से परमिशन ले उसके बाद अपने जिले में लॉकडाउन लागू करें, अब हालात ये हैं  कि कलेक्टर साहब की विज्ञप्ति आती है  'चार दिन' का लॉक डाउन है, जब तक आदमी चार दिन के हिसाब से तैयारी करता है तब तक फिर एक नई विज्ञप्ति जारी  हो जाती हैं कि नहीं  भैया  अभी लॉकडाउन सिर्फ 'दो दिन' का है फिर पता नहीं क्या होता है  एक नया आदेश जारी हो जाता है कि नहीं नहीं लॉकडाउन अभी  'पांच दिन' चलेगा,  फिर ऊपर वाले फटकार लगाते हैं कि तुम लोगों को समझाया था ना कि हम लोगों की बिना परमिशन के कोई लॉकडाउन नहीं लगेगा।

तुम लोगों का क्या हैं  महीना पूरा होगा और तनख्वाह के लिए खड़े हो जाओगे लेकिन ये तनख्वाह कहां से  दें इसका  जुगाड़ तो हमें करना है आप 'लॉकडाउन लॉकडाउन' करते रहते हो, कभी सोचा है कि सरकार को कितनी अलसेट  हो रही हैं, अब बेचारे कलेक्टर साहब करें तो करें क्याl यहां यह भी देखना है कि  कोरोना वायरस पूरे जिले में न फैल जाए क्योंकि आप लाख निर्देश जारी करो कि 'दूरी बना कर रखो' 'हाथ साबुन से धो' ' सेनीटाइज' करो लेकिन किस को चिंता है लोग बाग चाट के ठेले पर खड़े होकर समोसा, कचोरी, सूंट रहे हैं फुल्की का पानी पी रहे हैं आलू बंडा  भाजी बड़ा, जलेबी, पोहा   कोई चीज  छूटने ना पाए, इधर दरुये  तो  पिछले लॉकडाउन का कोटा 1  दिन में  में खत्म करने की कोशिश में है उनका साफ कहना है कि जब सैनिटाइजर में अल्कोहल मिला रहने से कोरोना वायरस मर जाता है तो फिर हमारा तो पूरा शरीर  अंदर से  सैनिटाइज हो रहा है गलती से अगर कोरोना  आ भी  अभी गया तो वहां जाकर या तो 'टुन्न'  हो जाएगा या फिर हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा इसलिए पूरी ताकत से पीते हैं, एक के ऊपर एक चढ़े जा रहे हैं, ना मास्क है, ना साबुन है, बस हाथ में है तो सिर्फ बोतल, अब सरकार  और प्रशासन करे तो करे क्या, इधर नोट भी चाहिए उधर लोगों को बचाना भी हैl लॉकडाउन के आदेश इतने सस्पेंस वाले हैं कि बड़ी-बड़ी सस्पेंस फिल्में भी  उनके  सामने  पानी भर रही हैं l 

कब लागू होगा, कब खत्म हो जाएगा यह ना कलेक्टर जान रहे हैं न जिले  की जनताl अपने को तो लगता है कि  अब  कलेक्टरों को सरकार की तरफ से 'नोटशीट' की जगह  एक एक  'पत्थर वाली स्लेट' दे  देनी चाहिए, ताकि वे लॉकडाउन की घोषणा उसी स्लेट पट्टी पर करें  और जैसे ही ऊपर से आदेश आए कि  तुमने गलत आदेश कर दिया तो स्लेट पर लिखे  अपने पुराने आदेश को थूक लगाकर मिटाकर तुरंत दूसरा आदेश जारी  कर दें, इसमें कागज की भी ढेर सारी बचत है, वैसे भी पर्यावरण के लिए कागज का उपयोग कम से कम करना चाहिए क्योंकि कागज के लिए पेड़ काटे जा रहे हैं पेड़ काटने से पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है बेहतर  तो यही होगा  'स्लेट' वाली स्कीम हर जिले में लागू कर दी जाए और 'स्लेट भी टीन' वाली हो ताकि फूटने का डर ना रहे,  इससे पहाड़ियों को होने वाला नुकसान भी बचेगाl मुझे आशा ही नहीं बल्कि पूरा भरोसा है कि सरकार मेरे सुझाव को मानकर तमाम कलेक्टरों को  जल्द से जल्द एक एक 'स्लेट' और  एक एक 'पैकेट पेंसिल' मुहैया करवा  देगी।

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