व्यंगकर्ता- चैतन्य भट्ट (वरिष्ठ पत्रकार)
सत्तर के दशक में अपने ज़माने के मशहूर हास्य कलाकार निर्माता निर्देशक 'आई एस जौहर' ने अपनी बेटी 'अम्बिका ज़ौहर' को फिल्मों में स्थापित करने के उद्देश्य से एक फिल्म बनाई थी 'फाइव राइफल्स'। फिल्म में उन्होंने उस ज़माने के मशहूर हीरोज 'राजेश खन्ना' और 'शशि कपूर' के हमशक्लों को फिल्म में 'राकेश खन्ना' और 'शशि कपूर' के नाम से लांच किया था, दुर्भाग्य से फिल्म तो पिटी ही उनकी बेटी और वो दोनों हमशक्ल भी फ्लॉप की श्रेणी में आकर न जाने कंहा खो गए पता ही नहीं चला, लेकिन उस फिल्म की एक कव्वाली जो 'नाज शोलापुरी' ने लिखे थी और जिसे 'अज़ीज़ नाजा' ने गाया था बड़ी ही मशहूर हुई थी, जिसके बोल थे 'झूम बराबर झूम शराबी, काली घटा है मस्त फजा है, जाम उठाकर घूम घूम घूम, झूम बराबर झूम शराबी।
लगता है अपनी मध्य प्रदेश सरकार ने इस कव्वाली को अपनी सरकारी कव्वाली मान ली है और पूरे प्रदेश के दरूओं से कह रही है 'कोरोना जाए भाड़ में झूम बराबर झूम शराबी'।
पता लगा है की कोरोना के इस संकट काल में भी प्रदेश सरकार ने तमाम अंगरेजी, देशी शराब की दुकानों को सुंबह साढ़े आठ बजे से रात के साढ़े ग्यारह बजे तक दारू बेचने और दारू पिलाने की इजाजत दे दी है यानि दरुआ सुबह उठाकर सीधे ठेके पर जाए और चाय के बदले ' पैग' सूंट ले।
अब लोग बाग़ कह रहे है कि ये तो बड़ा ही गलत कदम है पर इन लोगों को उनके बारे में भी तो सोचना चाहिए जो लॉकडाउन के दौरान, जब सारा देश बंद था कैसे एक एक बूँद के लिए तरस गए थे, कितनी आशा भरी निगाहों से देखते थे दारू की दुकानों की फोटुओं को कि कब ये दुकाने वास्तव में खुली मिलेंगी।
अरबो का नुक्सान हो गया था सरकार को, इधर पीने वाले परेशान थे तो उधर पूरी की पूरी सरकार कि खर्चा चले तो चले कैसे। दारू तो हर प्रदेश की अर्थ व्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है जरा भी चोट लगी तो सारा प्रदेश हिल जाता है दूसरी बात किसी दरुये ने श्राप दे दिया तो उस श्राप से कोई मुक्त नहीं करवा सकता इसलिए सरकार ये रिस्क भी नहीं लेना चाहती सो अपना पुराना घाटा पूरा करने, अपने प्रदेश को राजस्व से लबालब करने के लिए यदि सरकार ने दरूओं के लिए दारू की नदियाँ बहा देना का क्रन्तिकारी निर्णय कर भी लिया है तो इसमें किसी को ऐतराज नहीं करना चाहिये।
दारू है ही ऐसी चीज कि इंसान अपने सारे गम, चिंता, परेशानी भुला देता है टुन्न होकर सड़क पर भी पड़ा हो तो सोचता है कि 'मखमली बिस्तर' पर आराम कर रहा है यदि जानवर मुंह भी सूंघ रहे हैं तो उसे लगता है कि कोई 'हसीना उसका चुम्बन' ले रही है अब आप ही बताओ ऐसा 'कल्पना लोक' और किस चीज में मिल सकता है सो लोग सुबह से रात तक दारू की टुन्नी में मस्त होने की कोशिश करते हैं।
जब अपन ने बड़ी खोजबीन की तो ये रहस्य की बात पता लगी कि सरकार का ये मानना है कि जब कोरोना को मारने के लिए जो 'सेनेटाइजर' बनाये जा रहे है उसमें सत्तर प्रतिशत से ज्यादा अल्कोहल का प्रयोग हो रहा है तो फिर इन दरुओं को कोरोना कैसे अड़ी पटक सकता है। उनके भीतर तो अल्कोहल लबालब भरा होगा, अव्वल तो कोरोना वायरस उनके पास आने से डरेगा और भूले भटके यदि उनकी भीतर घुस भी गया तो अंदर जाकर बेमौत मारा जाएगा क्योकि उनकी तो रग रग में, खून की एक एक बूँद में अल्कोहल की नदियाँ बह रही होंगी, इसलिए सरकार उनकी तरफ से पूरी तरह निश्चिन्त है कि कोरोना क्या उसका बाप, उसका पूरा खानदान, उसके दादा परदादा इन दरुओं का कुछ नहीं बिगाड़ सकते।
वैसे भी दरुओं की एक खासियत है वे भले ही आलू, टमाटर, लौकी, टिंडा, भाजी, करेला, कुंदरू, परवल खरीदते समय मोल भाव कर लें लेकिन दारू की दूकान में सीधे नोट फेंकते है और बोतल को अपने सीने से लगा कर घर आ जाते हैं। न तो कभी उसके दामों के बारे में पूछताछ करते हैं न कभी ये जानने की कोशिश करते है कि उसकी वास्तविक कीमत कितनी है और वे उसे कितने में खरीद रहे हैं।
'बार' में तो और मजा है जंहा 'पैग' के हिसाब से दारू मिलती है। दरुओं को कोई होश ही नहीं रहता कि वे कितने पैग उड़ेल चुके है और कितने का बिल बार वाला दे रहा है है। उसने 'जानीवाकर' की बजाय 'रॉयल स्टेग' का पैग बना कर दे दिया है या 'जैक डेनियल' की जगह 'रॉयल चेलेंज' या फिर 'मंकी शोल्डर' की जगह 'मैकडॉवेल' पिला दी है।
सचमुच बड़े भोले होते है ये दरुये। दो रुपये की नमकीन के साथ ही मजा ले लेते है या फिर दस रूपये के चने में चार लोग निबट जाते हैं और कुछ न मिले तो फिर 'नमक' तो जिंदाबाद है ही।
सरकार को तो चाहिये कि दारू की दुकाने चौबीस घंटे खुली रखने के आदेश जारी कर दे इससे सरकार को भी फ़ायदा होगा और दरुयों की दुआएं तो लगेंगी ही, वैसे भी 'नाज शोलापुरी' ने अपनी कव्वाली में ये बात कही है 'इसके पीने से तबियत में रवानी आये, इसको बूढ़ा भी जो पी ले तो जवानी आये' शायद यही कारण है कि आजकल कई बुढ्ढे जवानी के चक्कर में दारू सटकाये पड़े हैं। पूरे प्रदेश के दरुओं से माफीनामे के साथ।
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