व्यंगकर्ता- चैतन्य भट्ट (वरिष्ठ पत्रकार)
देश के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बार अपनी 'मन की बात' में कहा कि 'खिलोने' के व्यापार में अपने इंडिया की भागीदारी बहुत कम है, हमारे यंहा के बच्चे चीन के बनाये खिलौनों से खेलते हैं लेकिन अब समय आ गया है कि हम खिलौना व्यापार को आगे बढ़ाये और यंहा के युवा नए नए तरीके के खिलौनों का उत्पादन कर खिलौनों के मामले में देश को आत्म निर्भर बनाये।प्रधानमंत्री ने तो ये बात इतने दिनों बाद कही है पर लगता है देश के नेताओं और अफसरों को पहले से ही इस बात का इल्म हो गया था कि खिलौनों से ही अपनी दुकानदारी चल सकती हैं यही कारण हैं कि उन्होंने देश की जनता और मतदाता को अपनी खिलौना बना लिया।
जैसे खिलोने को कँही ही रख दो, उसको कैसा भी उलटा सीधा कर दो, उस पर कितना भी अत्याचार करो, उसे तोड़ डालो वो बेचारा चूं भी नहीं करता वो ही हाल इस देश की जनता का हो गया है, फर्क इतना सा है कि खिलौना बेजुबान होता है और जनता जुबां वाली, पर नेताओ और अफसरों ने अपने मकड़जाल में देश की जनता और मतदाता को ऐसा फंसाकर रखा है कि वो भी बेजुबान हो गई है।
खिलोने के साथ बच्चे जैसा व्यवहार करते हैं वैसा ही 'बिहेव' ये नेता और अफसर जनता के साथ करते हैं। नेता और अफसर जनता के पैसों पर ऐश करते हैं, उसे झूठे वादों का सब्ज बाग़ दिखाते है, उसकी गाढ़ी कमाई से जो टेक्स आता हैं उस टेक्स के पैसों से विदेश यात्राएं करते हैं , बड़ी - बड़ी गाड़ियों में घूमते हैं, बड़े बड़े बंगलों में रहते है, अपनी बीमारी का इलाज करवाने अमेरिका और इंग्लैंड चले जाते है लेकिन जनता चूं तक नहीं कर पाती क्योकि जनता रुपी खिलोने की चाबी उनके पास ही तो होती हैं।
अब जब खिलौनों का इतना बड़ा उद्योग राजनेता और अफसर चला रहे है तो भला इस देश के युवा के खिलोने का बिजनेस कैसे चल पायेगा ये भी तो प्रधानमंत्री को बोलने से पहले सोचना चाहिए था। आज की तारीख में मतदाता से बढ़ कर खिलौना तो और कोई और है ही नहीं। उसके साथ साथ जैसा चाहे व्यवहार करो वो कुछ नहीं कहने वाला।
अब खिलोने की बात चली है तो अपन ने अपने जमाने में 'गुड्डा गुड़िया' के खिलोने देखे थे, मोहल्ले की लड़कियों के साथ मिलकर 'गुड्डा गुड़िया' का 'ब्याह रचाना' उन दिनों सबसे लोकप्रिय और मनचाहा खेल समझा जाता था। मिट्टी के खिलोने जिनमें बर्तन, चूल्हा, पटा, बेलन, कप बशी हाथी शेर और फलों में सेव्, आम, सीताफल, बिही, सब कुछ मिट्टी का ही तो बनता था।
प्रायमरी स्कूल में कभी - कभी मिट्टी के ये खिलोने भी बनाकर ले जाने पड़ते थे, उस वक्त ये पता नहीं था कि आगे आने वाले समय में इन खिलौनों की जगह बन्दूक , पिस्टल, तलवार, टेंक जैसे खिलोने बच्चों के हाथों में दिखाई देंगे।
वैसे खिलौनों का कितना महत्त्व है कि आज से कई बरस पहले उस ज़माने के सबसे लोकप्रिय उपन्यासकार 'गुलशन नंदा' के उपन्यास पर एक फिल्म बनी थी 'खिलौना' जिसका एक गाना बड़ा मशहूर हुआ था 'खिलौना जान कर तुम तो मेरा दिल तोड़ जाते हो' यानि 'दिल' भी खिलोने जैसा ही होता है कब टूट जाए और उसे कौन तोड़ दे कह नहीं सकते। 'आशिक' और 'माशूक' के बारे में अक्सर ये ही कहा जाता है।
पुराने ज़माने के खिलोने होते तो थे बड़े नाजुक, जमीन में गिरे और टूटे, इसलिए उन्हें बड़ी हिफाजत से रुई में रखना पड़ता था, उसके बाद चीनी खिलोने आये जिनकी कोई गेरंटी नहीं थी कि वे कब तक चलेंगे उसके बाद भी उन्होंने पूरा बाजार 'कैप्चर' कर लिया, अब प्रधान मंत्री कह रहे है कि भारत को खिलोने बनाकर चीन को टक्कर देना चाहिए।
दिक्कत तो ये है कि नेता हो या अफसर जब उनके सामने 130 करोड़ जनता खिलौना बनी हुई है तो नए खिलोनो की जरूरत ही क्या है इसलिए प्रधानमंत्री जी मन की बात में भले ही कुछ कहें पर अपने को नहीं लगता कि कोई युवा खिलोने के व्यापार में हाथ आजमाएगा क्योकि आज की तारीख में तो वो खुद ही खिलौना बना हुआ है।
रोजगार पाने के लिए सरकार के हाथो का खिलौना है, उद्योग के लिए लोन के लिए बैंकों के हाथों का खिलौना बना है, लायसेंस पाने के लिए अफसरों के हाथों में खिलौना बन कर खेल रहा है, सरकारी नौकरी पाने के लिए सरकारी विभागों के हाथों का खिलौना बना हुआ है, प्राइवेट में नौकरी मिल भी जाए तो सेठ और मालिक के हाथों का खिलौना बना हुआ है वो जैसा नचाना चाहते है उसे वैसा नाचना पड़ता है। अब जंहा खुद ही युवा खिलौना बना हुआ है वो खिलौना क्या बनाएगा ये सोचने वाली बात तो है न।
0 टिप्पणियाँ