चैतन्य भट्ट
इस देश के लोगों और मीडिया को दूसरा कोई काम नहीं बचा है, जरा सी बात होती है और सारी दुनिया सर पर उठा लेते हैं, रसोई गैस, पेट्रोल और डीजल के भाव क्या बढे अखबारों में, टीवी में तमाम "गृहणियों" की फोटो छपने लगी कि इस मंहगाई के बढने से उनका सारा बजट बिगड जायेगा। अब वे कैसे रोटीे बनाकर अपने ‘मरद’ और बाल बच्चों को खिलायेंगी?
अपने को तो एक बात समझ में नहीं आती कि दुनिया में ऐसी कौन सी चीज है जो बढती नहीं है? बच्चा पैदा होता है धीरे - धीरे बढ़ता है और देखते ही देखते जवान हो जाता है, पेड पौधे आदमी लगाता है, वे भी पानी और धूप पाकर बढ़ते हैं फिर पेड़ का रूप धारण कर लेते हैं, नौकरी जब इंसान ज्वाईन करता है तो "तनख्वाह" कितनी कम होती है फिर धीरे - धीरे उसमें ‘‘इंन्क्रीमेन्ट’’ लगते हैं, मंहगाई भत्ता बढता है, हाउस रेन्ट बढ कर मिलने लगता है और तनख्वाह में बढोतरी होती जाती है, यही हाल पोस्ट का होता है जो पहले ‘क्लर्क’ के रूप में भरती होता है वो कुछ ही सालों में ‘अफसर’ हो जाता है।
जब देश में "भ्रटाचार" बड़ रहा है, "आबादी" बड़ रही है, "गुंडे लुच्चे" बढ रहे हैं, "नेता" बढ रहे हैं "अपराधी" बढ रहे है, "गरीबी और अमीरी" दोनों बढ रही है तो मंहगाई भी बढ गई तो इसमें इतनी हाय तौबा मचाने की जरूरत भला क्या है? जनता तो चाहती है कि मंहगाई भर का ‘‘विकास’’ न हो, वह अविकसित होकर रह जाये,उस पर भरी "जवानी" न आये, अरे भाई उसको भी हक है सबसे साथ बढने का।
हर कोई जवान हो रहा है और मंहगाई बेचारी "बच्ची" बनी रहे ये तो गलत बात है। जब सरकार हजारों रूपये तनख्वाह बढा देती है, चौथा पांचवा, छटवा, सातवा पता नही कौन - कौन सा आयोग बैठाकर तनख्वाह में बढोतरी कर देता है तब कोई ‘‘चूं’’ भी नहीं करता l जो लोग पेट्रोल के दाम बढ़ने का विरोध कर रहे है उनसे पूछो हुजूर जब पेट्रोल बीस, तीस रूपैया लीटर था आप तब भी उतनी गाडी चलाते थे और आज सौ रूपया है तो भी उसको उतना ही रगड रहे हो। गैस के दाम बढने से हलाकान हो रही गृहणियाों से भी कोई पूछे कि माताओ, बहनों गैस के दाम बढने के बाद क्या कभी आपने "चूल्हे" में, ‘‘कोयले की या बरूदे की सिगडी’’ में रोटी बनाने की कोशिश की है, नहीं न, इधर मर्दों से पूछो आपसे किसने कहा है कि गाडी चलाओ, सायकल चलाओ या पद यात्रा करो, स्वास्थ भी अच्छा बना रहेगा और प्रदूषण भी ख़त्म हो जाएगा।
अपनी तो पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस और मंहगाई को एक ही सलाह है कि तुम तो जी भर के बढ़ो जिसको लेना होगा लेगा जिसे नही लेना होगा नहीं लेगा। इनके चक्कर में तुम अपने विकास पर ‘‘ब्रेक’’ मत लगाना, सरकार को भी यही सलाह है कि इस ‘‘चिल्लपों’’ से डर जाओगे ते ये लोग जब चाहे तुम्हे दम देते रहेंगे तुम तो हर चीज के रेट बढ़ाते रहो लोग आगे बढ़ने के लिए अपनी पूरी जिन्दगी लगा देते है और वो ही तुम भी करो समझ गए न?
ये जुलुम न करना
सुना है आजकल सरकार और ट्विटर के बीच जम कर युद्ध चल रहा है सरकार कह रही है हमारे नियमों का पालन करो और ट्विटर कह रहा है कि ये तो तानाशाही है, अब ये भी पता लगा है कि सरकार ने अल्टीमेटम दे दिया है कि यदि हमारी बात नहीं मानी तो ट्विटर पर बैन लगा दिया जाएगा।
सब कुछ करना सरकार जी, लेकिन ऐसा जुलुम न करना वरना अपनी तमाम राजनैतिक पार्टियों के अधिकाँश नेता तो बेरोजगार हो जाएंगे , सुबह उठते ही बिना ब्रश किये कांग्रेस के नेता बीजेपी के खिलाफ ट्वीट कर देते है और बीजेपी वाले कांग्रेस के, इन सबकी रोजी रोटी ट्विटर ही तो चला रहा है जिस दिन ये नेता ट्वीट नहीं करते पता नहीं कैसी घबराहट सी महसूस होने लगती है इन नेताओं को।
किसी का "मुँह सूखने" लगता है तो किसी का पेट "गुड़ गुड़" बोलने लगता है किसी का "सर भारी" हो जाता है तो किसी के "हाथ पैर काँपने" लगते हैं कोई बेहोशी में "आएं बाए" बकने लगता है तो किसी के मुंह से "फसूकर" छूटने लगता है कुल मिलकर जब तक वे दो, चार, दस ट्वीट करके अपने मन की भड़ास नहीं निकाल लेते तब तक उन्हें न तो चैन आता है और न ही वे हल्का महसूस कर पाते हैं।
सोचो अगर ट्विटर बैन हो गया तो इन तमाम नेताओ का क्या होगा जिनकी पूरी राजनीति ट्विटर पर चल रही है और फिर इससे अच्छा और हो भी क्या सकता है कि अपने घर में बैठकर पूरे देश में राजनीति चले। टीवी वाले, अखबार वाले भी समझ गए हैं कि इन नेताओ से मिलना, उनके बयान लाना अब आसमान के तारे तोड़कर लाने जैसा है इसलिए वे भी सुबह होते ही इन नेताओ का "ट्विटर हैंडल" खोलकर फिर दिन भर उसी ट्वीट को रगड़ते रहते है।
अपनी तो ट्विटर से एक ही इल्तजा है कि सरकार की बात मान लो और अपने आप को चलने दो वरना यदि तुम बैन हो गए तो तमाम नेता तुम्हें पानी पी - पी कर कोसेंगे क्योकि फिर उन्हें सड़कों पर उतरना होगा जो उनके बस की बात रही नहीं है।
सुपर हिट ऑफ़ द वीक
"तुम्हारी आँख क्यूँ सूजी हुई है" श्रीमान जी के दोस्त ने उनसे पूछा
कल मैं अपनी पत्नी के जन्म दिन पर उसके लिए केक लेकर आया था
"इससे आँख सूजने का क्या ताल्लुक है" दोस्त ने फिर पूछा?
दरअसल मेरी पत्नी का नाम है "तपस्या" और दुकानदार ने केक पर लिख दिया "हैप्पी बर्थ डे समस्या"
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