तुलसी मठ के महंत ने अब तक 100 से ज्यादा टीबी मरीजों को गोद लिया



बरेली से संवादाता डॉक्टर मुदित प्रताप सिंह की रिपोर्ट

जनपद बरेली _ तुलसी मठ के महंत ने अब तक 100 से ज्यादा टीबी मरीजों को गोद लेकर उनका इलाज शुरू कराने में रहा (विशेष) अहम योगदान।

तुलसी मठ के महंत नीरज का ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) को वर्ष 2025 तक देश से भगाने का लक्ष्य बड़ा है, इसीलिए जितना बड़ा लक्ष्य उतने बड़े सहयोग की जरूरत है, इसलिए इस कार्य में राजनेता, व्यापारी, धर्मगुरु, समाजसेवी एवं अन्य सभी लोगों के साथ की जरूरत है।

बरेली में तुलसी मठ के महंत नीरज नयन दास ने नजीर पेशकर अन्य धर्मगुरुओं को नई राह दिखाई है,  अगर अन्य धर्मगुरु एवं समाज के लोग भी आगे आ गए तो कम से कम जनपद बरेली  में तो टीबी का खात्मा हो जाएगा।

बरेली _ जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ. के. के मिश्रा के मुताबिक महंत नीरज नयन दास ऐसे धर्मगुरु हैं जो मठ में धार्मिक कार्यों का निर्वहन करने के साथ-साथ सामाजिक जिम्मेदारियों को भी महसूस करते हैं। ये बड़ी खुशी की बात है। वह अब तक 100 से ज्यादा टीबी मरीजों को गोद ले चुके हैं, और उनका हर तरह से ख्याल रखते हैं। वह विभाग के सक्रिय निक्षय मित्र हैं। अगर उनकी तरह और धर्मगुरु और समाज के लोग आगे आएं तो इस बीमारी का उन्मूलन जल्द हो जाएगा।



महंत नीरज में यह परोपकारी जज्बा टीबी से ग्रसित एक रिटायर सैनिक की नौ माह तक की गई मदद से जगा। फिर उन्होंने मुड़कर नहीं देखा और संपर्क में आने वाले हर टीबी मरीज की सेवा करने लगे। वह हर टीबी कैंप में आहार बांटते हैं।  (इस वक्त वह कई टीबी मरीजों को पोषण आहार दे रहे हैं।)

महंत नीरज के अनुसार तुलसी मठ रामानंदीय निर्मोही अखाड़ा से संबद्ध है। यहां 500 वर्ष पहले तुलसीदास जी ने कथा की थी, उनका नाता इस स्थान से बाल्यकाल से ही रहा है। उन्होंने बताया कि कुछ साल पहले बदायूं के एक किसान, जिनके मुंह से खून आ रहा था, उनकी  जांच उन्होंने जिला अस्पताल में कराई तो पता चला वह टीबी से संक्रमित हैं। लगभग नौ माह चले इलाज के दौरान अपने घर पर ही रख कर किसान की सेवा की, इसके बाद उन्हें ऐसा जुनून सवार हुआ कि हर सोमवार को टीबी क्लीनिक के दौरान खाना बांटना शुरू कर दिया। 

महंत ने बताया कि वह किसी गांव जाते हैं और उन्हें टीबी के लक्षण वाला मरीज दिखाई देता है तो वह तुरंत उसे नजदीक के अस्पताल में टीबी की जांच कराने की सलाह देते हैं। अब तक 100 से अधिक लोगों को इलाज के लिए प्रेरित कर चुके हैं। वह टीबी फोरम के मेंबर भी हैं और उन्हें इस बात का बहुत सुकून मिलता है कि वह टीबी मरीजों के लिए कुछ कर पा रहे हैं। कोशिश यही है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को गोद लेकर उनका इलाज पूरा कराएं। 

पौष्टिक आहार मिला तो सुधरी सेहत _ फरीदपुर के भोला गांव की रहने वाली टीबी पीड़ित बच्ची ने बताया कि उसके घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। उसे गर्दन के आसपास गांठें होने लगीं। मां ने जिला अस्पताल में दिखाया तो पता चला कि उसे टीबी है। दवाएं तो चलने लगीं लेकिन अच्छा पौष्टिक आहार ना मिलने से उसकी तबीयत में सुधार नहीं हो रहा था। जब महंत जी ने उसे  पोषण आहार देना शुरू किया तो तबीयत में सुधार आया। डॉक्टर कहते हैं कि वह जल्दी ठीक हो जाएगी।                             





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