'शुभम' की काव्य गोष्ठी-मुशायरे में कवियों-शायरों ने भरे शोख-चटख रंग



गणेश पथिक समेत तीन वरिष्ठ कवि-पत्रकारों शायरों का किया गया सारस्वत अभिनंदन

संवाददाता मुदित प्रताप सिंह की रिपोर्ट

बरेली _ शुभम मेमोरियल साहित्यिक, सामाजिक एवं जनकल्याण समिति के तत्वावधान में हार्टमैन कालेज रामलीला मैदान रोड के पास प्रमुख समाजसेवी शायर शम्स रहमान के आवास पर उन्हीं के संयोजकत्व में सरस काव्य मुशायरा गोष्ठी और साहित्यकार सम्मान समारोह का आयोजन हुआ।
संस्थाध्यक्ष सत्यवती सिंह सत्या और संस्था के अन्य पदाधिकारियों ने वरिष्ठ कवि-पत्रकार गणेश पथिक, वरिष्ठ पत्रकार निर्भय सक्सेना और मकबूल शायर असरार नसीमी का फूलमालाएं पहनाकर, बैज लगाकर, शाॅल उढ़ाकर और प्रशस्तिपत्र भेंटकर सारस्वत अभिनंदन किया।
इससे पूर्व काव्य गोष्ठी और मुशायरे का आग़ाज रामधनी निर्मल की मां वाणी वंदना और असरार नसीमी, मुजम्मिल हुसैन की नआत से हुआ।

मोहतरमा नसीर शम्सी ने अपनी इस ग़ज़ल पर खूब वाहवाही और तालियां बटोरीं-भुलाना था जिसे ये दिल भुला पाता तो अच्छा था, निकल जाता मेरी आंखों से ये सपना तो अच्छा था।
वरिष्ठ कवि-ग़ज़लकार रणधीर गौड़ 'धीर' ने मुख्य अतिथि की हैसियत से यह ग़ज़ल पेश की तो पूरी महफिल तालियों की गड़गड़ाहट से झूम उठी-इश्क की फितरत बदनाम होकर रह गई, जिंदगी मजबूरियों का नाम होकर रह गई। मां की शान में पढ़ी गई राज शुक्ल ग़ज़लराज की इस ग़ज़ल ने पूरी महफिल को भावविभोर कर दिया-अगर मां प्यार से रख सर पे अपना हाथ देती है, तो समझो कि बना हर बिगड़ी बात देती है। रामकुमार भारद्वाज अफरोज़ ने भी अपने सदाबहार अंदाज में इस गीत को गाकर खूब तालियां बटोरीं। चुटकुले इतने चुटीले हो गए, शायरी के पेंच ढीले हो गए। बौर की खुशबू हवा में क्या उड़ी, कोयलों के सुर सुरीले हो गए। मशहूर शायर सरबत परवेज के हर अशआर पर सामयीन उन्हें फूलमालाएं पहनाते  रहे-दिल दुखाने की बात मत करना, दूर जाने की बात मत करना, इस चमन को जला दिया तुमने, अब सजाने की बात मत करना। शहर के महबूब शायर शाद शम्सी ने भी अपने सभी शेरों पर खूब दाद बटोरी हादसे ऐसे-ऐसे होने लगे, जिनको पाना था उनको खोने लगे, जिनको फूलों से हमने तोला था, खार वो ही अब तो चुभोने लगे। अध्यक्षता कर रहे प्रख्यात ग़ज़लकार विनय जायसवाल साग़र ने भी अपने खूबसूरत कलाम से गंगा-जमुनी महफिल को खूब रंगीनियां बख्शीं। मंच पर प्रकाश चंद्र सक्सेना, शाद शम्सी और शम्स रहमान भी मौजूद रहे। वरिष्ठ कवि गणेश पथिक, ब्रजेंद्र अकिंचन, उमेश त्रिगुणायत अद्भुत, उपमेंद्र सक्सेना, दीपक मुखर्जी, संस्थाध्यक्ष सत्यवती सिंह सत्या, प्रकाश मौर्य मृदुल, मुजम्मिल हुसैन, रामकुमार कोली, रामस्वरूप गंगवार, राजकुमार अग्रवाल, डाॅ. अखिलेश गुप्ता, मुक्तक सम्राट रामप्रकाश सिंह ओज, रीतेश साहनी, अविजीत अवि, लोकगीतकार रामधनी निर्मल और काव्यमय सफल संचालन कर रहे मनोज दीक्षित टिंकू ने भी देशभक्ति, श्रंगार, हास्य-व्यंग और माटी से जुड़ी सम-सामयिक, सशक्त कविताओं-गीतों-छंदों से इस काव्य गोष्ठी में ढेर सारे चटख रंग भर दिए।

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