इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सरकारी अधिकारियों द्वारा पूर्व जजों के नाम में 'रिटायर्ड' जोड़ने पर आपत्ति जताई। जानें कोर्ट का कड़ा निर्देश।
प्रयागराज: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सरकारी अधिकारियों द्वारा पूर्व जजों के नाम के साथ 'रिटायर्ड' शब्द जोड़ने के तरीके पर गंभीर आपत्ति जताई है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह एक बड़ी गलती है जिसे तुरंत सुधारने की आवश्यकता है।
इस मामले में जस्टिस जे.जे. मुनीर ने कहा कि जजों के नाम में 'रिटायर्ड' शब्द जोड़ना असंवैधानिक है और यह गलत प्रोटोकॉल का उदाहरण है। उन्होंने स्पष्ट किया कि किसी भी पूर्व जज को संबोधित करते समय उनके नाम के साथ 'माननीय श्रीमान न्यायमूर्ति... (सेवानिवृत्त)' या 'हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज' लिखना चाहिए, न कि उनके नाम का हिस्सा बनाकर 'रिटायर्ड' शब्द जोड़ना।
कोर्ट का यह सख्त रुख तब सामने आया जब उत्तर प्रदेश सरकार के एक अधिकारी द्वारा दायर हलफनामे में एक पूर्व जज का नाम गलत तरीके से लिखा गया। इस मामले में अपर मुख्य सचिव (गृह) ने एक समिति का उल्लेख करते हुए कहा कि "माननीय न्यायमूर्ति श्री जे.एन. मित्तल" ने इसकी अध्यक्षता की, जबकि सही नाम "जस्टिस ए.एन. मित्तल" था।
जस्टिस मुनीर ने इस गंभीर गलती पर नाराजगी जताई और कहा कि जज का नाम गलत तरीके से प्रस्तुत करना न केवल अपमानजनक है, बल्कि प्रोटोकॉल का उल्लंघन भी है। उन्होंने अधिकारियों को तुरंत इस गलती को सुधारने और सही तरीके से पूर्व जजों का उल्लेख करने का आदेश दिया।
कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि रजिस्ट्रार (प्रोटोकॉल) इस मामले पर विस्तृत रिपोर्ट पेश करें, जिसमें मौजूदा और पिछले प्रोटोकॉल दिशा-निर्देश शामिल हों। इस मुद्दे की अगली सुनवाई 30 अगस्त को होगी, जहां उम्मीद की जा रही है कि राज्य सरकार इस गलती को सुधारने के लिए उचित कदम उठाएगी।
इस मामले में याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता आदित्य प्रकाश वर्मा और शैलेश वर्मा ने किया।
यह मामला साफ तौर पर इंगित करता है कि सरकारी अधिकारियों को प्रोटोकॉल के मामले में और अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है, ताकि भविष्य में इस तरह की गलतियां न हो।
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