इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के खिलाफ दाखिल जनहित याचिका को खारिज कर दिया, कोर्ट ने कहा कि याचिका में कोई दम नहीं है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट में उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को बड़ी राहत मिली है। अदालत ने उनके खिलाफ दाखिल जनहित याचिका को खारिज कर दिया है। यह याचिका उनके द्वारा दिए गए विवादास्पद बयान "सरकार से संगठन बड़ा है" के खिलाफ दाखिल की गई थी। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि याचिका में कोई दम नहीं है और इसे बेमतलब करार दिया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस अरुण भंसाली और जस्टिस विकास बुधवार की डिवीजन बेंच ने इस याचिका पर अपना फैसला सुनाया। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि यह बयान पार्टी फोरम में प्राइवेट कैपिसिटी में दिया गया था, और इसका कोई संवैधानिक महत्त्व नहीं है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि केशव प्रसाद मौर्य एक संवैधानिक पद पर रहते हुए भी एक पार्टी सदस्य हैं और पार्टी फोरम पर दिए गए बयानों का सरकार के फोरम से कोई संबंध नहीं है।
यह याचिका अखबारों में छपी खबरों के आधार पर दाखिल की गई थी, जिसमें मौर्य के बयान को सरकार विरोधी बताया गया था। याचिकाकर्ता का दावा था कि यह बयान संवैधानिक पद की गरिमा के खिलाफ है और इससे सार्वजनिक हितों पर प्रभाव पड़ता है। लेकिन कोर्ट ने याचिकाकर्ता की दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि यह बयान पार्टी स्तर पर दिया गया था और इसका सरकारी कार्यों से कोई संबंध नहीं है।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि एक संवैधानिक पद पर रहते हुए भी, कोई भी व्यक्ति अपनी पार्टी की विचारधारा का समर्थन कर सकता है और इस संदर्भ में दिया गया बयान पूरी तरह से सही है। मौर्य के इस बयान को लेकर विपक्ष ने भी कड़ी प्रतिक्रिया दी थी और इसे लोकतांत्रिक व्यवस्था के खिलाफ बताया था, लेकिन कोर्ट ने इस मामले को जनहित का विषय मानने से इंकार कर दिया।
डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने इस फैसले का स्वागत किया है और इसे न्याय की जीत बताया है। उन्होंने कहा कि विपक्ष ने उनकी छवि को धूमिल करने के लिए यह याचिका दाखिल की थी, लेकिन कोर्ट ने सच का साथ दिया और उन्हें न्याय दिलाया।
इस फैसले के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति में भी हलचल मच गई है। भाजपा के नेताओं ने इसे मौर्य की नैतिक जीत बताया है, वहीं विपक्षी दलों ने इस फैसले पर निराशा जताई है। यह मामला राजनीति के गलियारों में चर्चा का विषय बन गया है, और इसके दूरगामी राजनीतिक परिणाम हो सकते हैं।
इस निर्णय से न सिर्फ केशव प्रसाद मौर्य बल्कि भाजपा को भी एक बड़ी राहत मिली है। कोर्ट के इस फैसले ने साफ कर दिया है कि राजनीति में दिए गए बयानों को संवैधानिक नजरिए से देखने का कोई आधार नहीं है, जब तक कि वे सरकार के फोरम से संबंधित न हों।
इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फैसला स्पष्ट रूप से यह बताता है कि पार्टी फोरम पर दिए गए बयानों का संवैधानिक पदों से कोई संबंध नहीं होता। इस फैसले से यह भी स्पष्ट होता है कि राजनीति में विचारों और बयानों को सार्वजनिक हितों से जोड़कर देखना हमेशा सही नहीं होता। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को इस फैसले से बड़ी राहत मिली है और यह फैसला उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है।
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