जौनपुर के फर्जी यूट्यूबर का खुलासा: सरकारी नौकरी के नाम पर रच डाली धोखाधड़ी की खौफनाक कहानी



जौनपुर में यूट्यूबर कौशल पाण्डेय ने सरकारी नौकरी दिलाने के नाम पर लोगों से लाखों की ठगी की। जानिए उसकी धोखाधड़ी की पूरी कहानी।


जौनपुर, उत्तर प्रदेश का एक छोटा सा शहर, जो हाल ही में एक बड़े घोटाले का केंद्र बन गया है। इस घोटाले के मास्टरमाइंड के रूप में एक यूट्यूबर का नाम सामने आया है, जिसने सरकारी नौकरी के नाम पर दर्जनों लोगों से लाखों रुपये की ठगी की है। यह कहानी है कौशल पाण्डेय की, जो मड़ियाहूं तहसील क्षेत्र के कानावां गांव का रहने वाला है और जिसने यूट्यूब चैनल की आड़ में एक बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी का जाल बिछाया।


कैसे शुरू हुई फर्जीवाड़े की कहानी?

कोविड-19 महामारी के दौरान, जब अधिकांश लोग अपनी रोज़मर्रा की जिंदगी की समस्याओं से जूझ रहे थे, उसी समय कौशल पाण्डेय ने अपने धोखाधड़ी के साम्राज्य की नींव रखी। वह कुछ कथित सीनियर पत्रकारों के संपर्क में आया और उनके संरक्षण में अपना यूट्यूब चैनल चलाने लगा। धीरे-धीरे, उसकी महत्वाकांक्षाएं बढ़ती गईं, और उसे एक संपादक बनने की धुन सवार हो गई। इस धुन ने उसे एक खतरनाक राह पर डाल दिया, जहां से उसने ठगी और फर्जीवाड़े का सिलसिला शुरू किया।


सरकारी नौकरी का झांसा

कौशल पाण्डेय ने सरकारी नौकरी दिलाने का झांसा देकर लोगों से बड़ी रकम ऐंठनी शुरू की। उसके ठगी के शिकार अधिकतर लोग गरीब और निम्न मध्यम वर्ग के थे, जो सरकारी नौकरी के सपने देखते थे। कौशल ने अपने रसूख और फर्जी दस्तावेजों के सहारे लोगों को विश्वास दिलाया कि वह उन्हें सरकारी नौकरी दिला सकता है। इसके लिए उसने फर्जी नियुक्ति पत्र तैयार किए और लोगों को बांट दिए। 


फर्जी दस्तावेजों का खेल

कौशल पाण्डेय का ठगी का जाल इतना बड़ा था कि उसने जिला मजिस्ट्रेट कार्यालय से लेकर प्रेस और पंजीयन कार्यालय नई दिल्ली तक फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल किया। उसने मड़ियाहूं दर्शन और वैभव उजाला हिंदी दैनिक समाचार पत्र का संपादक बनने के लिए फर्जी रिपोर्ट बनाकर प्रेस और पंजीयन कार्यालय भेज दी। लेकिन उसकी चालाकी पर तब पानी फिर गया, जब प्रेस और पंजीयन कार्यालय दिल्ली के अधिकारियों को इस रिपोर्ट पर शक हुआ। इसके बाद उन्होंने जिला मजिस्ट्रेट कार्यालय से इस रिपोर्ट की पुष्टि मांगी, जिससे पूरा मामला खुलकर सामने आ गया।


डीएम ऑफिस में फर्जीवाड़ा, किसी को भनक तक नहीं लगी

यह आश्चर्यजनक है कि जिलाधिकारी कार्यालय के आसपास यह सारा खेल चलता रहा, लेकिन किसी अधिकारी को इसकी भनक तक नहीं लगी। कौशल पाण्डेय ने डीएम कार्यालय के बाहर से ही अपने फर्जीवाड़े का संचालन किया। वह मास्क पहनकर और रजिस्टर लेकर आता था, जिसपर वह लोगों की हाजिरी लगवाता था। इस दौरान डीएम कार्यालय के बाहर उसकी टीम मौजूद रहती थी, जो सरकारी नौकरी के नाम पर लोगों से पैसे वसूलती थी। कई सालों तक यह फर्जीवाड़ा चलता रहा, लेकिन किसी को भी इसकी भनक नहीं लगी।


कई थानों में दर्ज हैं मामले

कौशल पाण्डेय के खिलाफ जौनपुर के विभिन्न थानों में दर्जनों मुकदमे दर्ज हैं। पुलिस ने उसकी गिरफ्तारी के बाद उसके पूरे नेटवर्क को खंगालना शुरू कर दिया है। आरोप है कि कौशल अकेला नहीं था, बल्कि उसके साथ कई कथित सीनियर पत्रकार भी शामिल थे, जो उसे जिले के अधिकारियों से मिलवाते और संरक्षण प्रदान करते थे। 


जेल भेजे जाने के बाद बढ़ी चिंता

कौशल पाण्डेय की गिरफ्तारी के बाद उसके आकाओं की चिंता बढ़ गई है। उन्हें डर सता रहा है कि पुलिस कहीं उन तक भी ना पहुंच जाए। पुलिस और एसओजी टीम इस पूरे मामले की छानबीन कर रही है और उन सभी लोगों को चिन्हित कर रही है, जो इस फर्जीवाड़े में शामिल थे। 


पीएम मोदी के साथ फर्जी फोटो बनाई

कौशल पाण्डेय का जालसाजी का तरीका इतना शातिर था कि उसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई बड़े नेताओं के साथ अपनी फर्जी फोटो बनाकर लोगों को दिखाईं। इन फर्जी तस्वीरों के जरिए वह लोगों को विश्वास दिलाता था कि उसके बड़े नेताओं के साथ संबंध हैं, और वह उन्हें सरकारी नौकरी दिला सकता है। इसके अलावा, उसकी लग्जरी स्कॉर्पियो कार और भौकाली हाव-भाव भी लोगों को प्रभावित करने में सहायक साबित होते थे।


पत्रकारों की भूमिका पर उठे सवाल

कौशल पाण्डेय के फर्जीवाड़े में कथित सीनियर पत्रकारों की भूमिका भी संदिग्ध मानी जा रही है। पुलिस अब उन पत्रकारों का आपराधिक रिकॉर्ड खंगाल रही है, जो इस मामले में शामिल हो सकते हैं। इस पूरी घटना ने पत्रकारिता की गरिमा पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ