डिजिटल अरेस्ट: साइबर अपराधियों का नया जाल, जानें कैसे बचें




डिजिटल अरेस्ट साइबर ठगी का नया तरीका है। जानें कैसे साइबर अपराधी ब्लैकमेलिंग कर ठगी कर रहे हैं और इससे कैसे बचें।

आर.के.सोनी वरिष्ठ पत्रकार, छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़, विश्व मीडिया।  साइबर अपराधियों ने अब डिजिटल अरेस्ट का नया हथियार तैयार किया है। इस तकनीक के जरिए ब्लैकमेलिंग और साइबर ठगी के मामलों में तेजी देखी जा रही है। इसमें किसी व्यक्ति पर अपराध में संलिप्त होने का झूठा आरोप लगाकर उसे ऑनलाइन वीडियो ट्रायल के जरिए जेल भेजने की धमकी दी जाती है, और बदले में पैसों की मांग की जाती है।

कैसे होता है डिजिटल अरेस्ट फ्रॉड?

यह फ्रॉड आमतौर पर किसी अनजान नंबर से फोन कॉल द्वारा शुरू होता है। कॉल करने वाला खुद को ट्राई (टेलीकॉम रेग्युलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया) का अधिकारी बताकर कहता है कि आपका मोबाइल नंबर बंद होने वाला है। इसके बाद, वह आपका नंबर एक "क्राइम ब्रांच इंस्पेक्टर" को देता है, जो वीडियो कॉल के माध्यम से आपसे संपर्क करता है।

वीडियो कॉल पर वह "इंस्पेक्टर" पुलिस की वर्दी में दिखाई देता है और दावा करता है कि आपका नंबर ड्रग्स सप्लाई में शामिल पाया गया है। वह आपको धमकी देता है कि आपको जेल हो सकती है। यह सुनकर आप घबरा जाते हैं, और फिर वह आपसे "जमानत" और "पुलिस कार्यवाही" के नाम पर पैसे की मांग करता है। इस पूरे प्रकरण में आपको एक डिजिटल अरेस्ट का माहौल बनाकर फंसाया जाता है, जहां आपको ऑनलाइन एक जगह स्थिर रखने की कोशिश की जाती है।

इस तरह के फ्रॉड से कैसे बचें?

महत्वपूर्ण बात यह है कि डिजिटल अरेस्ट जैसा कोई कानूनी प्रावधान नहीं है। न ही पुलिस या किसी अन्य कानूनी संस्था द्वारा ऑनलाइन पूछताछ की जाती है। ऐसे में किसी अनजान कॉल से सावधान रहें और अपनी व्यक्तिगत जानकारी जैसे आधार कार्ड, पैन कार्ड, बैंक खाते की जानकारी साझा न करें।

यदि आपके साथ ऐसी घटना होती है, तो तुरंत इसकी शिकायत नजदीकी थाने, साइबर सेल, या 1930 हेल्पलाइन नंबर पर करें। साथ ही, www.cybercrime.gov.in पर भी इसकी रिपोर्ट दर्ज करें।

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