गोद में लिया, दिल से दुलारा: झाड़ियों में मिली नवजात को दरोगा ने बनाया अपनी बेटी!




नवरात्रि पर देवी स्वरूप नवजात को झाड़ियों में छोड़ गया, दरोगा ने अपनाया, परिवार में खुशी की लहर, कानूनी प्रक्रिया जारी।

नवरात्रि पर देवत्व का प्रतिरूप बनी मासूम: झाड़ियों में मिली नवजात को दरोगा ने बनाया अपनी बेटी

गाजियाबाद के मसूरी थाना क्षेत्र का डासना इलाका, जहां नवरात्रि की अष्टमी के दिन लोग छोटी कन्याओं को देवी मानकर पूज रहे थे, उसी पावन अवसर पर एक हृदयविदारक घटना सामने आई। इनायतपुर गांव में एक मासूम नवजात को झाड़ियों में लावारिस हालत में छोड़ दिया गया। जब इस नवजात बच्ची की रोने की आवाज वहां से गुजरते कुछ लोगों ने सुनी, तो तुरंत पुलिस को सूचना दी गई।

मामला और संवेदनशील तब हुआ, जब मौके पर पहुंचे चौकी प्रभारी पुष्पेंद्र ने इस बच्ची को अपनी बेटी बनाने का निर्णय लिया। नवरात्रि के इस शुभ दिन पर जहां बच्चियों को देवी का रूप मानकर पूजा जाता है, वहीं एक मासूम का यूं झाड़ियों में छोड़ा जाना समाज के लिए एक कड़वा सच है।

झाड़ियों में मिली मासूम: लोकलाज का भय या कुछ और?

जब इनायतपुर गांव के आसपास से गुजर रहे कुछ लोगों ने एक झाड़ी के पास से बच्ची के रोने की आवाज सुनी, तो उनके कदम वहीं ठहर गए। पास जाकर देखा, तो एक नवजात बच्ची को लावारिस हालत में पाया। इस मासूम को वहां किसने छोड़ा और क्यों? इस सवाल का कोई ठोस जवाब अभी तक सामने नहीं आ पाया है, लेकिन माना जा रहा है कि लोकलाज के भय के कारण किसी ने इस नवजात को त्याग दिया।

इस तरह की घटनाएं न सिर्फ सामाजिक धारणाओं पर प्रश्नचिन्ह लगाती हैं, बल्कि हमें यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि समाज में बच्चियों की स्थिति क्या है। क्या एक बच्ची को जन्म देना इतना बड़ा अपराध है कि उसे दुनिया में आते ही इस निर्दयता से छोड़ दिया जाए?

पुलिस ने दिखाई मानवता, चौकी प्रभारी ने किया अपनाने का फैसला

पुलिस को सूचना मिलते ही मसूरी थाने की टीम तुरंत मौके पर पहुंची। इस टीम में चौकी प्रभारी पुष्पेंद्र भी शामिल थे। जब उन्होंने मासूम को झाड़ियों में लावारिस हालत में देखा, तो उनका दिल पसीज गया। पुष्पेंद्र ने तुरंत फैसला किया कि वे इस बच्ची को अपनी बेटी बनाएंगे।

लेकिन यह फैसला अकेला उनका नहीं हो सकता था, इसके लिए उनकी पत्नी की सहमति भी जरूरी थी। उन्होंने अपनी पत्नी को फोन कर सारी जानकारी दी और पूछा कि क्या वे इस बच्ची को अपना सकते हैं।

पत्नी ने भी इस पवित्र अवसर पर बच्ची को घर लाने के विचार का स्वागत किया। उनका कहना था, "नवरात्रि के दिन देवी स्वरूप कन्या का घर आना हमारे लिए सौभाग्य की बात होगी।" इसके बाद, पुष्पेंद्र ने बिना कोई देरी किए बच्ची को अपनाने का निर्णय कर लिया।

कानूनी प्रक्रिया की जटिलताएं, लेकिन परिवार की खुशी का ठिकाना नहीं

हालांकि, पुष्पेंद्र और उनके परिवार ने इस नवजात को अपनाने का मन बना लिया है, लेकिन कानूनी प्रक्रिया अभी बाकी है। बच्चे को कानूनी रूप से गोद लेने के लिए कई शर्तें और प्रक्रियाएं पूरी करनी पड़ती हैं। पुष्पेंद्र ने इन प्रक्रियाओं को शुरू कर दिया है और जल्द ही इस मासूम को कानूनी तौर पर अपनी बेटी बना लेंगे।

इस घटना के बाद, पुष्पेंद्र के परिवार में खुशी की लहर है। शादी के कई साल बाद भी पुष्पेंद्र और उनकी पत्नी को कोई संतान नहीं हुई थी। ऐसे में इस बच्ची का आना उनके लिए किसी वरदान से कम नहीं है। परिवार और पड़ोसियों में भी इस फैसले की खूब सराहना हो रही है।

समाज के लिए संदेश: बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ

यह घटना केवल एक परिवार की कहानी नहीं है, बल्कि समाज के लिए एक गहरा संदेश भी देती है। आज भी देश के कई हिस्सों में लड़कियों को बोझ समझा जाता है। जन्म से पहले या बाद में उन्हें मार दिया जाता है या इस तरह लावारिस छोड़ दिया जाता है।

नवरात्रि के पावन अवसर पर इस तरह की घटनाएं हमें यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि देवी की पूजा और बच्चियों के प्रति समाज के इस दोहरे मापदंड को कब तक सहन किया जाएगा? अगर हम वास्तव में नारी शक्ति को मानते हैं, तो हमें हर बेटी का सम्मान करना सीखना होगा।

पुलिसकर्मी पुष्पेंद्र का कदम: इंसानियत की मिसाल

चौकी प्रभारी पुष्पेंद्र ने जिस तरह से इस बच्ची को अपनाने का फैसला किया, वह न केवल उनके मानवीय गुणों को दर्शाता है, बल्कि समाज को भी एक सकारात्मक दिशा दिखाता है। जिस समाज में लोग लड़कियों को त्याग रहे हैं, वहां एक पुलिसकर्मी द्वारा ऐसा कदम उठाना प्रेरणादायक है।

यह घटना हमें यह सिखाती है कि इंसानियत के गुण और सही सोच समाज में बदलाव ला सकते हैं। अगर हर व्यक्ति इसी तरह से सकारात्मक रूप से सोचने लगे, तो शायद ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति कभी न हो।

समाप्ति: उम्मीद और बदलाव की दिशा में एक कदम

नवजात बच्ची को अपनाने वाले पुलिसकर्मी पुष्पेंद्र की यह कहानी समाज में सकारात्मक बदलाव की एक छोटी सी किरण है। यह घटना हमें यह समझने का अवसर देती है कि बदलाव लाने के लिए केवल सोचने से कुछ नहीं होता, बल्कि हमें उस सोच को अमल में भी लाना होगा।

इस बच्ची का नया जीवन, एक नई शुरुआत और एक नया घर, समाज को यह याद दिलाता है कि बदलाव के लिए बस एक कदम उठाने की जरूरत होती है।

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