हरियाणा Exit Poll: बीजेपी की सत्ता से विदाई तय, जानें हैट्रिक से चूकने के 5 बड़े कारण




हरियाणा विधानसभा चुनाव के एग्जिट पोल के नतीजे बीजेपी के लिए एक बड़ा झटका साबित हो रहे हैं। एक्जिट पोल में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिलता दिख रहा है जबकि बीजेपी सत्ता से काफी दूर नजर आ रही है। राज्य में 10 साल की सत्ता के बाद एंटी इनकमबेंसी और जाट समुदाय की नाराजगी बीजेपी के लिए सत्ता की हैट्रिक से चूकने का कारण बनती दिख रही है।

बीजेपी की सत्ता से विदाई: एग्जिट पोल के नतीजों से बड़ा झटका

हरियाणा में 5 अक्टूबर को 90 विधानसभा सीटों पर मतदान हुआ था, जिसके बाद आए एग्जिट पोल के नतीजों ने बीजेपी को चौंका दिया है। एग्जिट पोल के मुताबिक कांग्रेस बहुमत के साथ सरकार बना सकती है, जबकि बीजेपी को सत्ता गंवानी पड़ेगी। फाइनल नतीजे 8 अक्टूबर को आएंगे, लेकिन एग्जिट पोल ने साफ संकेत दिए हैं कि बीजेपी इस बार सत्ता से बाहर हो सकती है।


1. एंटी इनकमबेंसी और जाटों की नाराजगी

हरियाणा की राजनीति में जाट समुदाय हमेशा से निर्णायक भूमिका निभाता रहा है। इस चुनाव में भी जाटों की नाराजगी ने बीजेपी के खिलाफ माहौल बना दिया है। 2014 में जब बीजेपी ने सत्ता में कदम रखा था, तब कांग्रेस सरकार के खिलाफ एंटी इनकमबेंसी थी। अब वही स्थिति बीजेपी के खिलाफ बन गई है।

मुख्यमंत्री बदलने के बावजूद बीजेपी जाट समुदाय की नाराजगी को दूर नहीं कर सकी। मनोहर लाल खट्टर की जगह नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी ने आखिरी समय में सत्ता बचाने की कोशिश की, लेकिन एग्जिट पोल के नतीजे बताते हैं कि यह रणनीति सफल नहीं हो सकी।


2. किसानों और महिला पहलवानों का मुद्दा

हरियाणा में किसानों और महिला पहलवानों के मुद्दों ने बीजेपी के खिलाफ बड़ा जनमत तैयार किया। किसान आंदोलन और केंद्र सरकार के रवैये से हरियाणा के किसानों में गहरी नाराजगी थी। बीजेपी द्वारा किसानों के खिलाफ बयानबाजी और उनके प्रदर्शनों से निपटने के तरीके ने पार्टी के खिलाफ माहौल तैयार किया।

साथ ही, महिला पहलवानों के मुद्दे पर भी बीजेपी की खामोशी उसे भारी पड़ी। सांसद बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ आरोपों के बावजूद बीजेपी ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया, जिससे विनेश फोगाट और अन्य पहलवानों के समर्थन में हरियाणा की जनता ने नाराजगी जाहिर की।


3. परिवारवाद और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बीजेपी फेल

बीजेपी ने चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस पर परिवारवाद और भ्रष्टाचार के आरोप लगाए, लेकिन यह मुद्दे इस बार बेअसर साबित हुए। कांग्रेस के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा के परिवार पर हमले करना बीजेपी के लिए कोई फायदा नहीं दे सका। जनता ने इसे चुनावी एजेंडा मानकर खारिज कर दिया।


4. चुनाव स्थानीय मुद्दों पर आकर सिमट गया

इस बार का हरियाणा चुनाव राष्ट्रीय मुद्दों की बजाय स्थानीय मुद्दों पर केंद्रित हो गया। बीजेपी की रणनीति थी कि चुनाव को मोदी बनाम राहुल गांधी बनाया जाए, लेकिन यह योजना सफल नहीं हुई। नतीजतन, चुनाव कांग्रेस बनाम बीजेपी के रूप में बदल गया, जिसमें भूपेंद्र सिंह हुड्डा का कद मनोहर लाल खट्टर और नायब सिंह सैनी पर भारी पड़ा।


5. बीजेपी के बागियों ने बिगाड़ी बाजी

बीजेपी की सत्ता से दूरी का एक और बड़ा कारण उसके अपने बागी नेता भी बने। कई बड़े नेता बागी होकर निर्दलीय चुनाव मैदान में उतर आए, जिससे बीजेपी का वोट बैंक खिसक गया। हिसार से सांसद नवीन जिंदल की मां और फरीदाबाद से नागेंद्र भड़ाना ने बीजेपी से अलग होकर चुनाव लड़ा। इसी तरह, कई और नेता पार्टी से नाराज होकर निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़े, जिससे बीजेपी के वोटों में बंटवारा हुआ।

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