रावण का अनोखा मंदिर: साल में सिर्फ एक दिन खुलते हैं कपाट, विजयदशमी पर उमड़ती है भीड़



उत्तर भारत के इकलौते रावण मंदिर के कपाट साल में सिर्फ विजयदशमी के दिन ही खुलते हैं, जहां लोग रावण की विद्वता की पूजा करते हैं।


कानपुर में रावण का 200 साल पुराना मंदिर, जो साल में सिर्फ एक दिन खुलता है

उत्तर प्रदेश के कानपुर नगर के शिवाला क्षेत्र में स्थित एक अनोखा मंदिर है, जो उत्तर भारत में अपने आप में बेजोड़ है। यह मंदिर किसी देवी-देवता का नहीं, बल्कि लंका के राजा रावण का है। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इस मंदिर के कपाट साल में केवल एक ही दिन, दशहरे के दिन खुलते हैं। लगभग 200 साल पुराने इस दशानन मंदिर में लंकापति रावण देवी-देवताओं के पहरेदार के रूप में विराजमान हैं।

सिर्फ दशहरे के दिन खुलते हैं मंदिर के कपाट

विजय दशमी के अवसर पर इस मंदिर के कपाट सुबह-सवेरे खोले जाते हैं। दशहरे की सुबह जब मंदिर के दरवाजे खोले जाते हैं, तो अंदर एक गहरी धार्मिक शांति और श्रद्धा का वातावरण होता है। मंदिर के पुजारी सबसे पहले मंदिर की सफाई करते हैं और फिर विधि-विधान से रावण का जलाभिषेक करते हैं। इस अनोखी पूजा में तरोई के फूल और सरसों के तेल का दीपक अर्पित किया जाता है। रावण के जन्मदिन के रूप में इस दिन मंदिर में पूजा होती है और पूरे दिन दर्शनार्थियों का तांता लगा रहता है।

रावण के प्रति श्रद्धा और पूजन का अनूठा तरीका

रावण के प्रति इस अनोखी श्रद्धा का मुख्य कारण उसकी विद्वता और शिवभक्ति है। रावण को कई लोग केवल लंकापति और रामायण के खलनायक के रूप में जानते हैं, लेकिन यहां आने वाले श्रद्धालु उसे एक विद्वान ब्राह्मण और शिव भक्त के रूप में पूजते हैं। मान्यता है कि रावण ने भगवान शिव की तपस्या करके उनसे कई वरदान प्राप्त किए थे। यही कारण है कि लोग यहां आकर रावण से बल, बुद्धि और विद्या का आशीर्वाद मांगते हैं।

सुबह से शाम तक उमड़ती है भक्तों की भीड़

इस मंदिर के कपाट सुबह खुलते ही रावण का जन्मदिन मनाया जाता है, जो एक अद्भुत और अनोखी परंपरा है। विजय दशमी के दिन मंदिर में दिनभर भक्तों का तांता लगा रहता है। यहां आकर लोग रावण की पूजा करते हैं, उसकी विद्वता की सराहना करते हैं और अपनी बुद्धि और ज्ञान को बढ़ाने की कामना करते हैं। शाम होते ही मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं, और यह पूरे साल के लिए बंद रहता है। अगले साल दशहरे तक किसी को भी मंदिर के भीतर प्रवेश नहीं मिलता।

रावण: शिवभक्त और विद्वान

इस मंदिर की खासियत यह है कि यहां रावण को उसकी बुराइयों के लिए नहीं, बल्कि उसकी विद्वता और भगवान शिव के प्रति उसकी अटूट भक्ति के लिए पूजा जाता है। रावण को संस्कृत का महान ज्ञानी माना जाता है, और यही वजह है कि यहां के श्रद्धालु रावण को एक विद्वान और महान पंडित के रूप में सम्मानित करते हैं। कहा जाता है कि रावण ने अपनी विद्वता के बल पर ही लंका पर शासन किया था, और इसी विद्वता के कारण लोग आज भी उसकी पूजा करते हैं।

रावण के प्रति बदलती सोच

समय के साथ लोगों की सोच में भी बदलाव आया है। जहां पहले दशहरे पर रावण का पुतला जलाकर उसकी बुराइयों को समाप्त करने का प्रतीक मनाया जाता था, वहीं आज कई लोग रावण के अच्छे गुणों को भी मान्यता देने लगे हैं। कानपुर का यह दशानन मंदिर इस बदलती सोच का सबसे बड़ा उदाहरण है, जहां हर साल हजारों लोग रावण की पूजा करने आते हैं।

विजय दशमी की अद्भुत परंपरा

विजय दशमी के दिन जब अन्य जगहों पर रावण का पुतला दहन किया जाता है, तब इस मंदिर में रावण का अभिषेक और श्रंगार किया जाता है। यहां रावण को विद्वान और ज्ञान के प्रतीक के रूप में सम्मानित किया जाता है। मंदिर के पुजारी बताते हैं कि रावण का जन्म भी इसी दिन हुआ था, और इसलिए यहां उसे एक महान पंडित के रूप में पूजने की परंपरा है। रावण के प्रति इस सम्मान के कारण यहां का दशहरा समारोह काफी अनोखा और भव्य होता है।

रावण के मंदिर का महत्व

कानपुर के शिवाला क्षेत्र में स्थित यह मंदिर उत्तर भारत में रावण के प्रति श्रद्धा का एकमात्र उदाहरण है। पूरे उत्तर भारत में यह अकेला मंदिर है, जहां रावण की पूजा की जाती है। यहां आने वाले भक्तों का मानना है कि रावण की पूजा से उन्हें ज्ञान, शक्ति और विद्या की प्राप्ति होती है। रावण को भगवान शिव का परम भक्त माना जाता है, और इसी कारण यहां उसकी पूजा की जाती है।

मंदिर के पुजारी की मान्यता

मंदिर के पुजारी का कहना है कि रावण एक महान विद्वान था और उसकी शिवभक्ति अतुलनीय थी। वह यहां केवल रावण के खलनायक रूप को नहीं, बल्कि उसकी विद्वता और भक्ति को सम्मान देने के लिए आते हैं। भक्तों का मानना है कि इस मंदिर में रावण की पूजा करने से उनकी बुद्धि और ज्ञान का विकास होता है।

दशहरे के बाद बंद हो जाते हैं कपाट

विजय दशमी के दिन मंदिर में दिनभर पूजा और दर्शन होते हैं, और शाम को विशेष विधि-विधान से मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। इसके बाद मंदिर के दरवाजे अगले साल के दशहरे तक बंद रहते हैं। इस अद्भुत परंपरा के कारण यह मंदिर कानपुर में एक अनोखी पहचान रखता है, और हर साल हजारों श्रद्धालु यहां आते हैं।

कानपुर का यह दशानन मंदिर रावण की विद्वता और भक्ति का प्रतीक है, और इस अद्वितीय परंपरा के कारण यह मंदिर उत्तर भारत में खास स्थान रखता है।

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