देवरिया में दो विवाहित महिलाओं ने पति की प्रताड़ना से तंग आकर नाथ बाबा मंदिर में समलैंगिक शादी रचाई, चर्चा में मामला।
पति की प्रताड़ना से परेशान होकर उठाया कदम
गोरखपुर जिले की रहने वाली दोनों महिलाएं, जो पहले से विवाहित थीं, अपने पतियों की रोजमर्रा की प्रताड़ना और झगड़ों से तंग आ चुकी थीं। महिलाओं ने बताया कि उनके पति शराब के आदी थे और नशे में आकर आए दिन उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से परेशान करते थे।
जब भी उन्होंने इसका विरोध किया, उनके पतियों ने उन्हें घर से बाहर निकालने की धमकी दी। कॉलोनी में आए दिन अपमानित होना और घरेलू हिंसा झेलना उनकी जिंदगी का हिस्सा बन गया था। इसके बाद दोनों महिलाओं ने अपने पतियों को छोड़ने और एक नई जिंदगी की शुरुआत करने का फैसला किया।
मंदिर में रचाई शादी
गुरुवार को दोनों महिलाएं गोरखपुर से भागकर देवरिया पहुंचीं। यहां दुग्धेश्वर नाथ मंदिर में उन्होंने एक-दूसरे के साथ शादी कर ली। शादी के दौरान दोनों ने अपने नाम भी बदले। जहां एक महिला ने अपना नाम गुंजा रखा, वहीं दूसरी ने अपना नाम बबलू कर लिया।
उन्होंने बताया कि उनका प्रेम पिछले कई सालों से था और वे एक-दूसरे के बिना नहीं रह सकती थीं। शादी के दौरान दोनों ने साथ जीने-मरने की कसमें खाईं और यह भी कहा कि वे अब अपने घर वापस नहीं जाएंगी।
समाज की मिली-जुली प्रतिक्रिया
देवरिया की इस घटना ने समाज में अलग-अलग प्रतिक्रियाएं उत्पन्न की हैं। जहां कुछ लोग इसे साहसिक कदम मान रहे हैं, वहीं कुछ लोग इसे परंपराओं के खिलाफ बता रहे हैं।
महिलाओं ने यह भी स्पष्ट किया कि वे अपनी शादीशुदा जिंदगी में कभी खुश नहीं थीं। उनके पति न केवल उनका शोषण करते थे, बल्कि उन्हें उनके अधिकारों से भी वंचित रखते थे। ऐसे में उन्होंने यह फैसला अपनी खुशी और स्वतंत्रता के लिए लिया।
कानूनी पहलू पर सवाल
हालांकि, भारत में समलैंगिक विवाह को अभी तक कानूनी मान्यता नहीं मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने भले ही समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया हो, लेकिन विवाह का कानूनी अधिकार अभी तक नहीं दिया गया है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि इन महिलाओं के इस कदम पर प्रशासन और समाज क्या प्रतिक्रिया देते हैं।
महिलाओं का नया जीवन
शादी के बाद दोनों महिलाओं ने कहा कि वे अब गोरखपुर में जाकर अपनी नई जिंदगी की शुरुआत करेंगी। वे अब समाज के विरोध की परवाह नहीं करतीं, क्योंकि यह उनकी जिंदगी है और उन्हें इसका फैसला लेने का पूरा हक है।
समाज के लिए संदेश
यह घटना समाज के सामने कई सवाल खड़े करती है। क्या महिलाओं को अपने जीवन में स्वतंत्रता से जीने का अधिकार नहीं है? क्या घरेलू हिंसा से परेशान महिलाएं अपने लिए नए रास्ते नहीं चुन सकतीं? यह घटना उन महिलाओं के लिए प्रेरणा बन सकती है जो अभी भी घरेलू हिंसा और समाज के डर से चुपचाप सब सहन कर रही हैं।
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