महाकुंभ में नागा साधु प्रमोद गिरी की ‘जल तपस्या’ श्रद्धालुओं को हैरान कर रही है। 108 घड़ों के ठंडे पानी से स्नान करते हुए मानवता और जनकल्याण के लिए साधना।
प्रयागराज महाकुंभ में नागा साधु प्रमोद गिरी का जल तपस्या का संकल्प
प्रयागराज महाकुंभ में साधना के अनोखे रंग हर किसी का ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। यहां आए साधकों की अलग-अलग साधना श्रद्धालुओं के लिए कौतुहल का विषय बनी हुई हैं। इन्हीं में से एक हैं श्री पंच दशनाम अटल अखाड़े से जुड़े नागा साधु प्रमोद गिरी, जिनकी ‘जल तपस्या’ इन दिनों श्रद्धालुओं के बीच चर्चा का विषय बनी हुई है।
हर सुबह ब्रह्म मुहूर्त में गंगा के ठंडे पानी से 82 घड़ों से स्नान करना और भभूत लगाकर साधना में लीन होना, उनके दृढ़ संकल्प और हठयोग की अद्भुत मिसाल पेश करता है। नागा साधु का कहना है कि यह साधना न केवल उनकी व्यक्तिगत उपलब्धि है, बल्कि इसका उद्देश्य मानवता और जनकल्याण को समर्पित है।
कैसे करते हैं नागा साधु जल तपस्या?
नागा साधु प्रमोद गिरी प्रतिदिन सुबह 4 बजे गंगा घाट पर पहुंचते हैं। वहां ठंड के बावजूद, 82 घड़ों के गंगा जल से स्नान करते हैं। उनका कहना है कि यह साधना हठयोग का हिस्सा है, जिसमें शारीरिक और मानसिक शक्ति का गहरा समन्वय होता है। स्नान के बाद वह कपड़े नहीं पहनते, बल्कि पूरे शरीर पर भभूत लगाकर धूनी रमाते हैं।
साधना के दौरान वह न केवल अपने इष्ट देव की पूजा करते हैं, बल्कि गंगा मैया और अपने गुरु का ध्यान भी करते हैं। उनका यह तप अनुशासन, समर्पण और आस्था का प्रतीक है, जो महाकुंभ में आने वाले श्रद्धालुओं को प्रेरणा दे रहा है।
108 घड़ों से स्नान का संकल्प
नागा साधु प्रमोद गिरी ने ठंडे पानी से 108 घड़ों के स्नान का संकल्प लिया है। उन्होंने अपने इस तप की शुरुआत 51 घड़ों से की थी और प्रतिदिन स्नान के लिए दो घड़ों की संख्या बढ़ा रहे हैं। उनका मानना है कि यह साधना केवल व्यक्तिगत तप नहीं है, बल्कि इससे मानवता और प्रकृति के बीच संतुलन बनाने का संदेश मिलता है।
महाकुंभ में मौजूद श्रद्धालु नागा साधु की इस साधना को देखकर चकित हैं। कई लोग इसे कठिन मानते हैं, लेकिन साधु प्रमोद गिरी का कहना है कि इस तपस्या का मूल उद्देश्य मानसिक और शारीरिक शुद्धिकरण है।
श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र
महाकुंभ में त्रिवेणी संगम के किनारे, अटल अखाड़ा के शिविर में नागा साधु की तपस्या को देखने के लिए हर रोज सैकड़ों श्रद्धालु इकट्ठा होते हैं। ठंड में जहां लोग गर्म कपड़ों और रजाई में समय बिता रहे हैं, वहीं नागा साधु का यह तप श्रद्धालुओं को अचंभित करता है।
उनकी यह साधना महाकुंभ की एक महत्वपूर्ण विशेषता बन गई है। लोग इसे आध्यात्मिक और प्रेरणादायक मानते हैं।
नागा साधु का संदेश: साधना से मानवता का कल्याण
नागा साधु प्रमोद गिरी का कहना है कि उनकी साधना का उद्देश्य केवल आत्म-शुद्धिकरण तक सीमित नहीं है। यह पूरी मानवता के कल्याण और प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करने का एक तरीका है। वह कहते हैं, "गंगा जल में स्नान करना केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह मन, शरीर और आत्मा को शुद्ध करने का माध्यम है।"
महाकुंभ में नागा साधु का यह तप एक प्रेरणा है कि कैसे मानव इच्छा शक्ति से हर कठिनाई को पार कर सकता है।
महाकुंभ में नागा साधु प्रमोद गिरी की ‘जल तपस्या’ न केवल उनकी हठयोग की साधना को दर्शाती है, बल्कि मानवता और जनकल्याण के लिए समर्पण का प्रतीक भी है। उनकी इस साधना को देखने के लिए हर दिन हजारों लोग आते हैं और इससे प्रेरणा लेते हैं। यह साधना बताती है कि धर्म और अध्यात्म के माध्यम से किस तरह से समाज और प्रकृति को जोड़ने का प्रयास किया जा सकता है।
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