औरंगजेब का चमत्कारिक सामना: चित्रकूट में मंदिर तोड़ने निकला, फिर खुद बनवाने पर हुआ मजबूर!

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औरंगजेब, जिसने हजारों मंदिरों को ध्वस्त किया, चित्रकूट में मंदिर तोड़ने गया था, लेकिन ऐसी घटना हुई कि उसे खुद मंदिर बनवाना पड़ा. जानिए इस रहस्यमयी कथा को!


नई दिल्ली: इतिहास के पन्नों में मुगल शासक औरंगजेब का नाम क्रूरता और कट्टरता के लिए दर्ज है. भारत में 49 वर्षों तक शासन करने वाले इस शासक ने सैकड़ों मंदिरों को तुड़वाया और वहां मस्जिदों का निर्माण कराया. लेकिन उत्तर प्रदेश के चित्रकूट में स्थित एक मंदिर में उसके साथ कुछ ऐसा हुआ, जिसने उसकी सोच ही बदल दी.

देशभर में औरंगजेब के मंदिर तोड़ने की घटनाएं मशहूर हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि एक मंदिर ऐसा भी था, जहां औरंगजेब के घुटने टिक गए थे? जिस चित्रकूट में भगवान राम ने वनवास के दौरान समय बिताया था, वहीं एक ऐतिहासिक मंदिर भी मौजूद है, जिसे खुद औरंगजेब ने बनवाया था! आखिर ऐसा क्या हुआ कि एक क्रूर शासक, जो मंदिरों को ध्वस्त करता था, उसे खुद एक मंदिर का निर्माण कराना पड़ा? आइए जानते हैं इस रहस्यमयी घटना की पूरी सच्चाई.

चित्रकूट में औरंगजेब का मंदिर विध्वंस अभियान

कहा जाता है कि 1691 में जब औरंगजेब ने बनारस और मथुरा के मंदिरों को तोड़ने के बाद चित्रकूट का रुख किया, तो वह मंदाकिनी नदी के किनारे स्थित "मत्यगजेंद्रनाथ महादेव" मंदिर को नष्ट करने के इरादे से पहुंचा था. इस मंदिर का इतिहास अत्यंत पुराना है और मान्यता है कि इसे स्वयं ब्रह्मा जी ने स्थापित किया था.

औरंगजेब के सैनिकों ने जैसे ही मंदिर पर आक्रमण किया और शिवलिंग पर हथौड़े से प्रहार करने की कोशिश की, तभी एक अद्भुत घटना घटित हुई. कहा जाता है कि हथौड़ा लगते ही औरंगजेब की पूरी सेना बेहोश हो गई! सेनापति से लेकर सैनिक तक सभी अचेत होकर धरती पर गिर पड़े.

औरंगजेब की हार और मंदिर का चमत्कार

यह दृश्य देखकर औरंगजेब हक्का-बक्का रह गया. उसने पास ही स्थित बालाजी मंदिर के संत बालक दास से प्रार्थना की कि उसकी सेना को पुनः जीवित कर दिया जाए. संत ने औरंगजेब को एक शर्त रखी—अगर वह एक ताम्रपत्र पर यह लिखकर दे कि वह चित्रकूट के किसी भी मंदिर को नहीं तोड़ेगा, तभी कोई उपाय बताया जाएगा.

इतिहास के इस मोड़ पर औरंगजेब को झुकना पड़ा. उसने ताम्रपत्र पर हस्ताक्षर किए और चित्रकूट के मंदिरों को न छूने की शपथ ली. संत ने उसे एक भभूत दी और कहा कि इसे अपनी सेना पर लगाओ और 10 किलोमीटर दूर जाओ. जैसे ही औरंगजेब ने ऐसा किया, उसकी पूरी सेना होश में आ गई!

औरंगजेब ने मंदिर को दान दी जमीन

इस चमत्कारी घटना के बाद औरंगजेब इतना प्रभावित हुआ कि उसने बालाजी मंदिर के नाम हजारों बीघा जमीन दान में दे दी. यही नहीं, उसने खुद इस मंदिर का पुनर्निर्माण भी कराया. यह घटना आज भी मंदिर में मौजूद ताम्रपत्र के रूप में दर्ज है, जिसे देखने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं.

बालाजी मंदिर भारत का वह अनोखा मंदिर है जिसे औरंगजेब ने न केवल बचाया, बल्कि इसके निर्माण में भी योगदान दिया.

आज भी मौजूद हैं इतिहास के निशान

  • मत्यगजेंद्रनाथ मंदिर के शिवलिंग पर आज भी हथौड़े के वे निशान देखे जा सकते हैं, जो औरंगजेब की सेना ने मारे थे.
  • बालाजी मंदिर में मौजूद ताम्रपत्र इस घटना की सच्चाई को बयान करता है, जिस पर औरंगजेब की मोहर लगी है.
  • चित्रकूट के स्थानीय महंत और इतिहासकार इस घटना की पुष्टि करते हैं और इसे ऐतिहासिक साक्ष्य मानते हैं.

औरंगजेब का वह मंदिर, जो आज भी चर्चा में है

आज जब औरंगजेब को लेकर नई-नई बहसें छिड़ी हैं, तब चित्रकूट का यह मंदिर इस तथ्य को स्थापित करता है कि भारत की आध्यात्मिक शक्ति के आगे क्रूर से क्रूर शासक भी झुकने को मजबूर हो सकता है.

तो, क्या औरंगजेब को सच में एक चमत्कारी शक्ति ने झुकाया था? क्या यह एक ऐतिहासिक सत्य है या केवल एक किंवदंती? जो भी हो, चित्रकूट के मत्यगजेंद्रनाथ और बालाजी मंदिर आज भी इस कहानी के जीवित गवाह हैं!

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