बरेली में तीन तलाक से टूटी शबाना ने फांसी लगाकर जान दी, सुसाइड नोट में पति और ससुराल वालों पर लगाए गंभीर आरोप।
बरेली की शबाना की आत्महत्या: तीन तलाक, दूसरी शादी और दर्द से भरी मौत की कहानी
उत्तर प्रदेश के बरेली से एक रूह कंपा देने वाली खबर सामने आई है, जहां एक महिला ने पति की बेवफाई, प्रताड़ना और तीन talaq के सदमे में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। यह मामला प्रेमनगर थाना क्षेत्र के बानखाना मोहल्ले का है, जहां 45 वर्षीय Shabana का शव उसके मायके में कमरे के पंखे से लटका मिला। इस आत्महत्या के पीछे की कहानी जितनी दर्दनाक है, उतनी ही समाज को झकझोर देने वाली भी।
शबाना ने अपने पीछे एक ऐसा suicide note छोड़ा है, जिसमें उसने अपने पति Mohammad Yaseen, उसकी दूसरी पत्नी और ससुराल वालों को अपनी मौत का जिम्मेदार ठहराया है। ये शब्द न केवल एक महिला के टूते दिल का सबूत हैं, बल्कि उस सामाजिक सोच पर भी तमाचा हैं जो आज भी महिलाओं को केवल ‘वारिस पैदा करने की मशीन’ समझता है।
"तीन तलाक देकर घर से निकाल दिया… फिर कर ली दूसरी शादी"
शबाना की शादी साल 2012 में मेरठ के परतापुर निवासी मोहम्मद यासीन से हुई थी। शादी के कुछ वर्षों बाद शबाना को cancer हो गया, और इसी के साथ उसकी जिंदगी में अंधेरा छा गया। बीमारी के कारण वह मां नहीं बन सकी, और यहीं से शुरू हुई एक और जंग – समाज और ससुराल की मानसिक यातना की।
ससुराल वालों ने धीरे-धीरे उसे तानों और उलाहनों से घेर लिया। शबाना के साथ mental torture, domestic violence और उपेक्षा की घटनाएं आम हो गईं। पति यासीन का व्यवहार दिन-ब-दिन और खराब होता गया, और आखिरकार उसने शबाना को triple talaq दे दिया। इसके बाद यासीन ने दूसरी शादी कर ली और शबाना को उसके हाल पर छोड़ दिया।
"मेरे पति को मेरी मय्यत में भी मत आने देना…" - शबाना का सुसाइड नोट
शबाना ने अपने सुसाइड नोट में जो लिखा, वह किसी की भी आंखें नम कर सकता है। उसने लिखा:
"मैं अपनी मर्जी से आत्महत्या कर रही हूं। मेरी मौत के लिए मोहम्मद यासीन, उसकी दूसरी बीवी शाइस्ता और मेरे ससुराल वाले जिम्मेदार हैं। मुझे मारा-पीटा, घर से निकाला। मेरी आखिरी ख्वाहिश है कि मेरे पति को मेरी मय्यत में भी मत आने देना। मेरा चेहरा भी मत दिखाना। मेरी सारी संपत्ति और सामान मेरी बहनों को दे दिया जाए। मेरे ससुराल वालों का इसमें कोई हक नहीं होगा।"
यह चिट्ठी एक महिला के आत्मसम्मान और उसके भीतर के तूफान का दस्तावेज है, जिसे समझने के लिए समाज को आत्ममंथन करने की ज़रूरत है।
"पति की बेवफाई से टूट चुकी थी शबाना"
शबाना की बहनों का कहना है कि जब से यासीन ने दूसरी शादी की थी, तब से शबाना अंदर से पूरी तरह टूट चुकी थी। उन्होंने कई बार उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन शबाना अपने दर्द से निकल ही नहीं पाई। वह बार-बार कहती थी कि "अब जीने की कोई वजह नहीं बची है।"
परिवार वालों ने पुलिस को बताया कि शबाना अक्सर चुप रहती थी, कम बोलती थी और किसी से भी ज्यादा बात नहीं करती थी। धीरे-धीरे वह depression की शिकार होती जा रही थी, लेकिन कोई उसका दर्द समझ नहीं पाया।
"पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने शुरू की जांच"
शबाना की आत्महत्या की खबर मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची और शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेजा। पुलिस को कमरे से मिला suicide note जांच के लिए कब्जे में ले लिया गया है। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि नोट में जिन लोगों के नाम हैं, उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
"क्या महिलाओं की जिंदगी की कीमत सिर्फ मां बनने से है?"
शबाना की आत्महत्या केवल एक मामला नहीं, बल्कि वह कड़वा सच है जो आज भी कई महिलाओं की जिंदगी में जहर घोल रहा है। शादी के वक्त लिए गए सात वचन, साथ निभाने के वादे, बीमारियों में साथ देने की कसमें… सब कहां चले जाते हैं जब एक पत्नी मां नहीं बन पाती?
क्या किसी महिला की जिंदगी का मकसद सिर्फ संतान पैदा करना ही है? अगर वह यह नहीं कर पाती तो क्या उसका कोई अस्तित्व नहीं बचता? शबाना की मौत इन तमाम सवालों को जन्म देती है, जिनका जवाब आज भी हमारे समाज को देना बाकी है।
"Triple Talaq का दर्द और दोहरी मार"
2019 में भारत में Triple Talaq Law लागू किया गया, लेकिन क्या सिर्फ कानून बनाना काफी है? जब तक समाज की सोच नहीं बदलेगी, तब तक शबाना जैसी कई महिलाएं इसी दर्द से गुजरती रहेंगी। यासीन ने न सिर्फ शबाना को छोड़ दिया, बल्कि उसके सपनों, भरोसे और आत्मसम्मान को भी कुचल दिया।
"शबाना की आत्महत्या – एक समाजिक चेतावनी"
यह घटना महज एक आत्महत्या नहीं है, बल्कि एक सामाजिक चेतावनी है। यह केस उन तमाम महिलाओं की आवाज़ है जो चुपचाप सब कुछ सहती हैं, तिल-तिल कर मरती हैं, लेकिन बोलती नहीं। शबाना ने मरते-मरते समाज को आइना दिखा दिया है।
"आखिरी शब्द: चेहरा मत दिखाना…"
शबाना के अंतिम शब्द - “पति को मेरा चेहरा मत दिखाना” - उसकी टूट चुकी आत्मा की चीख है। यह लाइन इस घटना को शब्दों से परे एक भावनात्मक गहराई दे जाती है।
अब देखना यह होगा कि प्रशासन इस मामले में कितना न्याय करता है और क्या शबाना को उसके मरने के बाद वो इंसाफ मिलेगा, जो जीते जी उसे कभी न मिला?
0 टिप्पणियाँ