फरीदनगर में उर्स-ए-अलीमी कादरी इब्राहीमी राजशाही में उमड़ा जनसैलाब




फरीदनगर में उर्स-ए-मुल्लन मियां की रौशनी में नहा उठा शहर, मुर्दे जिंदा करने वाली करामातों का खुला ज़िक्र, भीड़ में सैकड़ों दीवाने।


फरीदनगर में सूफियाना जोश से भरा उर्स-ए-मुल्लन मियां, करामातों से गूंज उठा आसमान

उत्तर प्रदेश के हापुड़ ज़िले के फरीदनगर कस्बे में सूफी संत हज़रत क़ुत्बे आलम हाफिज़ अलीमुल्लाह शाह मुल्लन मियां कादरी राजशाही का 9वां सालाना उर्स-ए-पाक पूरी अकीदत और शानो-शौकत के साथ मनाया गया। दरगाह शरीफ़ पर चादरपोशी, गुलपोशी, महफिल-ए-नात और लंगर का आयोजन ऐसा था कि हर कोई कह उठा – “मुल्लन मियां जिंदाबाद!”

शुरू हुई महफिल कुरान की तिलावत से, शायरी और नात से गूंजा फिज़ा का हर कोना

महफिल की शुरुआत हाफिज़ व कारी इसरार रज़ा राजशाही साहब ने तिलावत-ए-कलाम-ए-पाक से की। शायरे इस्लाम इंतखाब आलम सम्भली राजशाही ने अपनी सूफियाना शायरी से समां बांधा तो कारी आबिद राजशाही और कौसर सम्भली ने दिल छू लेने वाली नात पेश की। महफिल में मौजूद हर शख्स झूम उठा।

मुर्दे ज़िंदा करने की करामात, मुल्लन मियां की रूहानी ताक़त पर सब हैरान

हाफिज़ मोहम्मद उमर राजशाही अलीमी हमीदी ने तकरीर में कहा कि जैसे पीरान-ए-पीर दस्तगीर गोसे आज़म ने मुर्दे ज़िंदा किए, वैसे ही उनके वंशज, हज़रत हाफिज़ सैय्यद मोहम्मद इब्राहीम शाह के जानशीन और हमारे दादा हज़रत अलीमुल्लाह शाह मुल्लन मियां ने भी यह करामात दुनिया को दिखाई। आज भी उनकी रूहानी मौजूदगी हर मुश्किल को आसान करती है।

मौलाना शमश कादरी और मुफ्ती रहमतुल्लाह मिस्बाही का सूफियाना अंदाज़, भीड़ में मचा जोश

महफिल की सदारत हज़रत अल्लामा मौलाना शमश कादरी (प्रिंसिपल, मदरसा इस्लामी अरबी, मेरठ) ने की। वहीं मुफ्ती रहमतुल्लाह साहब मिस्बाही (खुशहाली राजशाही) ने कहा कि "मुल्लन मियां की दुआ कभी खाली नहीं जाती। जिसने जो मांगा, मिला वही।"

'जो मांगा वही मिला' – मुफ्ती इश्तियाकुल कादरी की तकरीर ने मचाया जज़्बातों का तूफान

मुफ्ती इश्तियाकुल कादरी (मुफ्ती-ए-आज़म, मेरठ) ने भी अपनी तकरीर में मुल्लन मियां की करामातों का ज़िक्र करते हुए कहा कि "मैंने खुद देखा है कि उनके दरबार में आने वाला खाली नहीं जाता। वो अल्लाह के वली हैं, जिनके वसीले से रब खुद रहमतें बरसाता है।"

हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल, दरगाह शरीफ पर चादर पेश कर बांटी मोहब्बत

उर्स के दौरान हिंदू-मुस्लिम भाईचारे की अनूठी मिसाल देखने को मिली। सभी धर्मों के लोगों ने मिलकर चादरपोशी की और गुलपोशी के दौरान हर तरफ ‘या गोसे आज़म’ की सदाएं गूंजती रहीं। इस सूफियाना आयोजन ने धार्मिक सौहार्द का सुंदर संदेश दिया।

रातभर चला लंगर, सुबह कुल शरीफ के बाद पीरे तरीकत की दुआ से झूमा मजमा

रात में लंगर का आयोजन हुआ जिसमें हजारों जायरीन ने खाना खाया। सुबह कुल शरीफ की रस्म अदा की गई और फिर दरगाह के सज्जादा नशीन पीरे तरीकत हज़रत मौलाना हमीदुल्लाह राजशाही ने भारत की अमन-शांति, तरक्की और भाईचारे के लिए दुआ कराई।

देश-विदेश से पहुंचे मुल्लन मियां के दीवाने, सूफियों की मौजूदगी ने बढ़ाया जलसे का रौशन

इस बार उर्स में खास मेहमानों की भरमार रही। इनमें सूफी मोहम्मद अली, निशात खान (साउथ अफ्रीका), खानकाह के इमाम हाफिज दानिश राजशाही, हाजी दीन मोहम्मद साहब मोहतमिम दारुल उलूम गरीब नवाज़ देहरा, सूफी अशफाक खलीफा,सूफी अशरफ उल्लाह, कारी नईम राजशाही, सूफी निशात उल्लाह, सोनू, आसिफ उल्ला, शमशाद राजशाही,   सूफी फिरोज, जियाउल्लाह, समीर उल्लाह, शकील खान, शोएब खान, सूफी सगीर, आस मोहम्मद , साबिर, रहीस, पपपल शाकिर,मोहम्मद, हाफिज जुबेर, रामू, ओमकार, सूफी नईम,  सूफ़ी पिंटू, खुर्रम खान, अजीम, बशारत, सूफी युनूस, इनामुल्लाह खान, डॉक्टर असद उल्लाह, अली खान, वारिस खान, नबील खान, डॉक्टर समीह खान, रजाउल्लाह, शारिक उल्लाह सहित सैकड़ों लोग शामिल हुए।



सज्जादा नशीन से दुआ लेकर लोग हुए रुखसत, आंखों में था अश्क और दिल में रूहानी सुकून

कार्यक्रम के समापन पर सभी जायरीन ने सज्जादा नशीन से दुआ ली और लंगर खाकर वापस लौटे। हर शख्स के चेहरे पर सूफियाना करामातों का असर था। मुल्लन मियां के उर्स ने न केवल मजहबी जोश जगाया, बल्कि इंसानियत और मोहब्बत का पैगाम भी दिया।

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